आज तुम्हारे पदचापों की
सांस रोक कर आशा करता
तेज धूप में घर से निकलें
मैं दिल से आवाहन करता
देखें कितना प्यार मिला है,
कितने घर तक पंहुचे गीत
कड़ी धूप में , घर से बाहर, तुम्हें बुलाते मेरे गीत !
धन के भूखे नेह की भाषा
कभी समझ ना पाए थे !
जो चाहे थे ,नहीं मिल सका
जिसे न माँगा , पाए थे !
इस जीवन में,लाखों मौके,
हंस के छोड़े, हमने मीत !
धनकुबेर को, सर न झुकाया, बड़े अहंकारी थे गीत !
जीवन भर तो रहे अकेले
झोली कहीं नहीं फैलाई
गहरे अन्धकार में रहते ,
माँगा कभी दिया,न बाती
कभी न रोये, मंदिर जाकर ,
सदा मस्त रहते थे गीत !
कहीं किसी ने,दुखी न देखा,जीवन भर मुस्काये गीत !
जीवन बहता जाए , निर्झर
शीतल पवन चले ज्यूं सर्सर
चुनें, चुगें या चुक जाएंगे
सुनने से,सृष्टा का मर्मर
सृष्टि-चक्र में छोड़ें अपने,
प्रीत के पद-चिह्नों की रीत !
आओ मिलकर गाएं हम सब, जीवन के स्पंदन-गीत !
कहीं तो माँ की ममता ढूंढें
कहीं पिता की छाया, गीत !
बिटिया की स्नेहिल ऑंखें
बहन की राखी, मेरे गीत !
बेगानों की भीड़ में खोजें,
कुछ अपने से, अपनों को !
हर मन की पीड़ा को समझे , भावुक होते, मेरे गीत !
चारो ओर अज्ञान अँधेरा
क्रोध में भरते देखे लोग ,
सोंचा चित्त आनंद मिलेगा
पर विषाद,भर जाते लोग !
दहक़ रहे मरूस्थल में,
ज्यों पानी लेकर,मिलते मीत !
विषव्यापी इस चन्दनबन में, शीतल धारा मेरे गीत !
सारे जीवन में यादें ही ,
अक्सर साथ निभाती हैं !
न जाने , कब डोर कटे ,
कुछ गांठें पड़ती जातीं है
एक दिवस तो जाना ही है,
बहुत लिख लिए हमने गीत !
जिसको मधुर लगे, वे गाएँ , प्यार सिखाएं, मेरे गीत !
क्या मैं तुमसे करूं शिकायत
प्यास नहीं , बुझ पाएगी !
क्या जीवन भर खोया पाया
उम्र फिसलती जायेगी !
जितना जिया,खूब पाया है,
खूब हंस लिए, मेरे गीत !
मस्ती के अनंत सागर में, जी भर गोते खाए गीत !
सांस रोक कर आशा करता
तेज धूप में घर से निकलें
मैं दिल से आवाहन करता
देखें कितना प्यार मिला है,
कितने घर तक पंहुचे गीत

धन के भूखे नेह की भाषा
कभी समझ ना पाए थे !
जो चाहे थे ,नहीं मिल सका
जिसे न माँगा , पाए थे !
इस जीवन में,लाखों मौके,
हंस के छोड़े, हमने मीत !
धनकुबेर को, सर न झुकाया, बड़े अहंकारी थे गीत !
जीवन भर तो रहे अकेले
झोली कहीं नहीं फैलाई
गहरे अन्धकार में रहते ,
माँगा कभी दिया,न बाती
कभी न रोये, मंदिर जाकर ,
सदा मस्त रहते थे गीत !
कहीं किसी ने,दुखी न देखा,जीवन भर मुस्काये गीत !
जीवन बहता जाए , निर्झर
शीतल पवन चले ज्यूं सर्सर
चुनें, चुगें या चुक जाएंगे
सुनने से,सृष्टा का मर्मर
सृष्टि-चक्र में छोड़ें अपने,
प्रीत के पद-चिह्नों की रीत !
आओ मिलकर गाएं हम सब, जीवन के स्पंदन-गीत !
कहीं तो माँ की ममता ढूंढें
कहीं पिता की छाया, गीत !
बिटिया की स्नेहिल ऑंखें
बहन की राखी, मेरे गीत !
बेगानों की भीड़ में खोजें,
कुछ अपने से, अपनों को !
हर मन की पीड़ा को समझे , भावुक होते, मेरे गीत !
चारो ओर अज्ञान अँधेरा
क्रोध में भरते देखे लोग ,
सोंचा चित्त आनंद मिलेगा
पर विषाद,भर जाते लोग !
दहक़ रहे मरूस्थल में,
ज्यों पानी लेकर,मिलते मीत !
विषव्यापी इस चन्दनबन में, शीतल धारा मेरे गीत !
सारे जीवन में यादें ही ,
अक्सर साथ निभाती हैं !
न जाने , कब डोर कटे ,
कुछ गांठें पड़ती जातीं है
एक दिवस तो जाना ही है,
बहुत लिख लिए हमने गीत !
जिसको मधुर लगे, वे गाएँ , प्यार सिखाएं, मेरे गीत !
क्या मैं तुमसे करूं शिकायत
प्यास नहीं , बुझ पाएगी !
क्या जीवन भर खोया पाया
उम्र फिसलती जायेगी !
जितना जिया,खूब पाया है,
खूब हंस लिए, मेरे गीत !
मस्ती के अनंत सागर में, जी भर गोते खाए गीत !