Monday, June 02, 2014

दुनियां वाले कैसे समझें , अग्निशिखा सम्मोहन गीत -सतीश सक्सेना

कलियों ने अक्सर बेचारे
भौंरे  को बदनाम किया !
खूब खेल खेले थे फिर भी  
मौका पा अपमान किया !
किसने शोषण किया अकेले,  
किसने फुसलाये थे गीत !
किसको बोलें,कौन सुनेगा,कहाँ से हिम्मत लाएं गीत !

अक्सर भोली ही कहलाये
ये सजधज के रहने वाली !
मगर मनोहर सुंदरता में 
कमजोरी , रहती हैं सारी !
केवल भंवरा ही सुन पाये, 
वे  धीमे आवाहन  गीत !
दुनियां वाले कैसे समझें, कलियों के सम्मोहन गीत !


नारी से आकर्षित  होकर
पुरुषों ने जीवन पाया है !
कंगन चूड़ी को पहनाकर
मानव ने मधुबन पाया है !
मगर मानवी समझ न पायी, 
कर्कश,निठुर, खुरदुरे गीत !
अधिपति दीवारों का बनके , जीत के हारे पौरुष गीत !

स्त्रियश्चरित्रं पुरुषस्य भाग्यम
देवो न जानाति कुतो मनुष्यः
शक्तिः एवं सामर्थ्य-निहितः 
व्यग्रस्वभावः , सदा मनुष्यः !
इसी शक्ति की कर्कशता में, 
दच्युत रहते पौरुष गीत !
रक्षण पोषण करते फिर भी, निन्दित होते मानव गीत !

निर्बल होने के कारण ही 
हीन भावना मन में आयी 
सुंदरता  आकर्षक  होकर  
ममता भूल, द्वेष ले आयी 
कड़वी भाषा औ गुस्से का 
गलत आकलन करते मीत ! 
धोखा  खाएं आकर्षण में , अपनी  जान गवाएं गीत !

दीपशिखा में चमक मनोहर
आवाहन  कर, पास बुलाये !
भूखा प्यासा , मूर्ख  पतंगा , 
कहाँ पे आके, प्यास  बुझाये  ! 
शीतल छाया भूले घर की,
कहाँ सुनाये जाकर गीत !  
जीवन कैसे आहुति देते , कैसे जलते  परिणय गीत !
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