Saturday, August 10, 2013

इतना दर्द सुनाऊं किसको , कौन समझता मेरे गीत -सतीश सक्सेना

क्या खोया क्या पाया हमने ,
क्या छीना , इन नन्हों से !
क्यों न आज हम खुद से पूंछे
क्या पाया,  इन  राहों  से !
बचपन की मुरझाई आँखें, 
खूब रुलाये , हँसते  गीत !
देख सको तो, आँखें देखें ,अपने शिशु की, मेरे मीत !

अहम् हमारे ने,हमको तो

शक्ति दिलाई , जीने में !
मगर एक मासूम उम्र के,
छिने खिलौने,बचपन में !
इससे बड़ा पाप क्या होगा, 
बच्चों से छीना संगीत !
असुरक्षा बच्चों को देकर,खूब लडे, अज्ञानी गीत  !

हम तो कभी नहीं हँस पाए ,

विधि ने ही कुछ पाठ पढाये !
बच्चों का न , साथ दे पाए ,
इक दूजे को,सबक सिखाये !
पाठ पढ़ाया किसने,किसको,
वाह वाह करते हैं गीत  ?
अपने हाथों शाख काट के,कालिदास, रचते हैं गीत  ? 

अभी समय है,चलो हंसाएं 

हम अपनी, मुस्कानों को 
तुम आँचल की छाया दे दो
मैं कुछ लाऊँ, भोजन को !
नित्य रोज घर उजड़े देखें , 
तड़प तड़प, रह जाए प्रीत !
इतना दर्द, सुनाऊं किसको ,कौन समझता, मेरे गीत !

एक बार देखो , दर्पण में ,

खुद से ही कुछ बात करो
जीवन भर का लेखा जोखा
जोड़ के , सारी बात करो !
खाना पीना और सो जाना,
जीवन से यह कैसी प्रीत ?
मरते दम तक, साथ निभाएं,कहाँ से लायें ऐसे मीत  ?

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