Saturday, August 10, 2013

दर्द समझते मेरे गीत - सतीश सक्सेना

किसी कवि की रचना देखें,
दर्द छलकता,  दिखता है  !
प्यार, नेह दुर्लभ से लगते ,
शोक हर जगह मिलता है !
क्या शिक्षा विद्वानों को दें ,
रचनाओं  में , रोते गीत !
निज रचनाएं,दर्पण मन का , दर्द समझते, मेरे गीत ! 

अपना दर्द किसे दिखलाते ?

सब हंसकर आनंद उठाते !
दर्द, वहीँ जाकर के बोलो ,
भूले जिनको,कसम उठाके !
स्वाभिमान का नाम न देना,
बस अभिमान सिखाती रीत ,
अपना दर्द, उजागर करते, मूरख  बनते  मेरे  गीत !

आत्म मुग्धता,  मानव की ,
कुछ काम न आये जीवन में !
गर्वित मन को समझा पाना ,
बड़ा कठिन, इस जीवन में !
जीवन की कड़वी बातों को, 
कहाँ भूल पाते हैं गीत !
हार और अपमान यादकर,क्रोध में आयें मेरे गीत !

जब भी कोई कलम उठाये 

अपनी व्यथा,सामने लाये ,
खूब छिपायें, जितना चाहें 
फिरभी दर्द नज़र आ जाये
मुरझाई यह हँसी, गा रही, 
चीख चीख, दर्दीले गीत !
अश्रु पोंछने तेरे,जग में, कहाँ मिलेंगे निश्छल गीत  ?

अहंकार की नाव में बैठे,

भूले  निज कर्तव्यों को 
अच्छी मीठी ,यादें भूले , 
संचित कडवे कष्टों को
कितने चले गए रो रोकर,
कौन सम्हाले बुरा अतीत !
सब झूठें ,आंसू पोंछेंगे , कौन सुनाये , मंगल गीत  ?

सभी सांत्वना, देते आकर 
जहाँ लेखनी , रोती पाए !
आहत मानस, भी घायल 
हो सच्चाई पहचान न पाए !
ऎसी ज़ज्बाती ग़ज़लों को ,
ढूंढें अवसरवादी गीत !
मौकों का फायदा उठाने, दरवाजे पर तत्पर गीत !

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