हम तो केवल हंसना चाहें
सबको ही, अपनाना चाहें
मुट्ठी भर जीवन पाए हैं
हंसकर इसे बिताना चाहें
खंड खंड संसार बंटा है ,
सबके अपने अपने गीत ।
देश नियम,निषेध बंधन में,क्यों बांधा जाए संगीत ।
नदियाँ,झीलें,जंगल,पर्वत
हमने लड़कर बाँट लिए।
पैर जहाँ पड़ गए हमारे ,
टुकड़े,टुकड़े बाँट लिए।
मिलके साथ न रहना जाने,
गा न सकें,सामूहिक गीत ।
अगर बस चले तो हम बांटे,चांदनी रातें, मंजुल गीत ।
कितना सुंदर सपना होता
पूरा विश्व हमारा होता ।
मंदिर मस्जिद प्यारे होते
सारे धर्म , हमारे होते ।
कैसे बंटे,मनोहर झरने,
नदियाँ,पर्वत,अम्बर गीत ।
हम तो सारी धरती चाहें , स्तुति करते मेरे गीत ।
काश हमारे ही जीवन में
पूरा विश्व , एक हो जाए ।
इक दूजे के साथ बैठकर,
बिना लड़े,भोजन कर पायें ।
विश्वबन्धु,भावना जगाने,
घर से निकले मेरे गीत ।
एक दिवस जग अपना होगा,सपना देखें मेरे गीत ।
जहाँ दिल करे,वहां रहेंगे
जहाँ स्वाद हो,वो खायेंगे ।
काले,पीले,गोरे मिलकर
साथ जियेंगे, साथ मरेंगे ।
तोड़ के दीवारें देशों की,
सब मिल गायें मानव गीत ।
मन से हम आवाहन करते, विश्व बंधु बन, गायें गीत ।
श्रेष्ठ योनि में, मानव जन्में
सबको ही, अपनाना चाहें
मुट्ठी भर जीवन पाए हैं
हंसकर इसे बिताना चाहें
खंड खंड संसार बंटा है ,
सबके अपने अपने गीत ।
देश नियम,निषेध बंधन में,क्यों बांधा जाए संगीत ।
नदियाँ,झीलें,जंगल,पर्वत
हमने लड़कर बाँट लिए।
पैर जहाँ पड़ गए हमारे ,
टुकड़े,टुकड़े बाँट लिए।
मिलके साथ न रहना जाने,
गा न सकें,सामूहिक गीत ।
अगर बस चले तो हम बांटे,चांदनी रातें, मंजुल गीत ।
कितना सुंदर सपना होता
पूरा विश्व हमारा होता ।
मंदिर मस्जिद प्यारे होते
सारे धर्म , हमारे होते ।
कैसे बंटे,मनोहर झरने,
नदियाँ,पर्वत,अम्बर गीत ।
हम तो सारी धरती चाहें , स्तुति करते मेरे गीत ।
काश हमारे ही जीवन में
पूरा विश्व , एक हो जाए ।
इक दूजे के साथ बैठकर,
बिना लड़े,भोजन कर पायें ।
विश्वबन्धु,भावना जगाने,
घर से निकले मेरे गीत ।
एक दिवस जग अपना होगा,सपना देखें मेरे गीत ।
जहाँ दिल करे,वहां रहेंगे
जहाँ स्वाद हो,वो खायेंगे ।
काले,पीले,गोरे मिलकर
साथ जियेंगे, साथ मरेंगे ।
तोड़ के दीवारें देशों की,
सब मिल गायें मानव गीत ।
मन से हम आवाहन करते, विश्व बंधु बन, गायें गीत ।
श्रेष्ठ योनि में, मानव जन्में
भाषा कैसे समझ न पाए ।
मूक जानवर प्रेम समझते
हम कैसे पहचान न पाए ।
अंतःकरण समझ औरों का,
सबसे करनी होगी प्रीत ।
माँ से जन्में,धरा ने पाला, विश्वनिवासी बनते गीत ?
सारी शक्ति लगा देते हैं
अपनी सीमा की रक्षा में,
सारे साधन, झोंक रहे हैं
इक दूजे को,धमकाने में,
अविश्वास को दूर भगाने,
सब मिल गायें मानव गीत ।
मानव कितने गिरे विश्व में, आपस में रहते भयभीत ।
मानव में भारी असुरक्षा
संवेदन मन, क्षीण करे ।
भौतिक सुख,चिंता,कुंठाएं
मानवता का पतन करें ।
रक्षित कर,भंगुर जीवन को,
ठंडी साँसें लेते मीत ।
खाई शोषित और शोषक में, बढती देखें मेरे गीत ।
अगर प्रेम,ज़ज्बात हटा दें
कुछ न बचेगा मानव में ।
बिना सहानुभूति जीवन में
क्या रह जाए, मानव में ।
पशुओं जैसी मनोवृत्ति से,
क्या प्रभाव डालेंगे गीत !
मानवता खतरे में पाकर, चिंतित रहते मानव गीत ।
भेदभाव ही, बलि चढ़ जाए
सारे राष्ट्र साथ मिल जाएँ,
तनमनधन न्योछावर करके
बच्चों से निश्छल बन जाएँ ,
बे हिसाब रक्षा धन बाँटें ,
दुखियारों में, बन के मीत ।
प्रतिद्वंदिता त्यागकर इक दिन साथ रहेंगे बैरी गीत !
मूक जानवर प्रेम समझते
हम कैसे पहचान न पाए ।
अंतःकरण समझ औरों का,
सबसे करनी होगी प्रीत ।
माँ से जन्में,धरा ने पाला, विश्वनिवासी बनते गीत ?
सारी शक्ति लगा देते हैं
अपनी सीमा की रक्षा में,
सारे साधन, झोंक रहे हैं
इक दूजे को,धमकाने में,
अविश्वास को दूर भगाने,
सब मिल गायें मानव गीत ।
मानव कितने गिरे विश्व में, आपस में रहते भयभीत ।
मानव में भारी असुरक्षा
संवेदन मन, क्षीण करे ।
भौतिक सुख,चिंता,कुंठाएं
मानवता का पतन करें ।
रक्षित कर,भंगुर जीवन को,
ठंडी साँसें लेते मीत ।
खाई शोषित और शोषक में, बढती देखें मेरे गीत ।
अगर प्रेम,ज़ज्बात हटा दें
कुछ न बचेगा मानव में ।
बिना सहानुभूति जीवन में
क्या रह जाए, मानव में ।
पशुओं जैसी मनोवृत्ति से,
क्या प्रभाव डालेंगे गीत !
मानवता खतरे में पाकर, चिंतित रहते मानव गीत ।
भेदभाव ही, बलि चढ़ जाए
सारे राष्ट्र साथ मिल जाएँ,
तनमनधन न्योछावर करके
बच्चों से निश्छल बन जाएँ ,
बे हिसाब रक्षा धन बाँटें ,
दुखियारों में, बन के मीत ।
प्रतिद्वंदिता त्यागकर इक दिन साथ रहेंगे बैरी गीत !
Mr. Saxena ji yah sirf poem nahi balki pure Bharat Desh ko ekjut bandhey rakhne kii shakti hai* bahut hi sundar tareeke se aapne ise prastut kiya hai* apka bahut bahut dhanyawad*
ReplyDeleteAapse ek chhoti s request hai aap hamare blog par v jaur visit karen hame bahut hi jyada khushi hogi.
thank u so much*
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भेदभाव की, बलि चढ़ जाए
ReplyDeleteसारे राष्ट्र साथ मिल जाएँ,
तन मन धन सब बांटे अपना
बच्चों से निश्छल बन जाएँ ,
काश ऐसा हो पाये।
भेदभाव की, बलि चढ़ जाए
ReplyDeleteसारे राष्ट्र साथ मिल जाएँ,
तन मन धन सब बांटे अपना
बच्चों से निश्छल बन जाएँ ------
सार्थक सोच की भावमय और प्रभावपूर्ण रचना
उत्कृष्ट प्रस्तुति
आग्रह है----
और एक दिन
तन मन धन सब बांटे अपना
ReplyDeleteबच्चों से निश्छल बन जाएँ , bahut sundar chaah ..aamin ......
Sir behtareen krati.
ReplyDeleteअच्छा आह्वान गीत
ReplyDeleteनदियाँ,झीलें,जंगल,पर्वत
ReplyDeleteहमने लड़कर बाँट लिए।
पैर जहाँ पड़ गए हमारे ,
टुकड़े,टुकड़े बाँट लिए।
मिलके साथ न रहना जाने,गा न सकें,सामूहिक गीत ।
अगर बस चले तो हम बांटे,चांदनी रातें, मंजुल गीत ।
बहुत सुन्दर गीत है.
sandesh dete khubsurat geet.....kash yesa ho pata...
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