Saturday, August 10, 2013

घायल हो हो कर पहचानें , गद्दारों को मेरे गीत -सतीश सक्सेना

कितने लोग मिले जीवन में
जिनके पैर पड़े थे, छाले !
रोते थे हिचकी, ले लेकर
उनको घर में दिए सहारे !
प्यार और अहसान न माने,
बड़े लालची थे, वे मीत !
घायल हो हो  कर पहचानें ,गद्दारों को, मेरे गीत !

चंद दिनों में दौलत पाकर

डींग  मारते , भड़क  रहे !
चंद तालियों को सुन कर ,
ही खुद को राजा मान रहे !
प्रजा समझ कर जिसे रुलाया,
वही करेगी इनको ठीक !
कुछ वर्षो के बाद,  इन्हीं  पर, खूब  हँसेंगे,  मेरे गीत  !

दम भरते हैं,धर्मराज का

करते काम, कसाई का !
पूरे दिन,मृदु वचन सुनाएँ 
रात को रूप, शराबी का !
कुछ दिन में जनता सीखेगी,
ध्यान से पढने, मेरे गीत !
बड़ी दुर्दशा, नेता झेलें  , जिस दिन जागें,  मेरे गीत  !

माल कमाने को निकले हैं 

देशभक्ति का झंडा लेकर  
प्रजातंत्र में, नेता निकले 
राजनीति का डंडा लेकर !
खूब बनायें मूर्ख देश को,
अनपढ़ प्रजा,सुन रही गीत !
पतन देख कर,राजनीति का,भौचक्के हैं, मेरे  गीत !

चोर उचक्के, रखवालों को
थप्पड़ भरे, बाज़ार मारते !
सच्चे लोगों को, समाज में
जीभर के अपमानित करते
चोरों को अध्यक्ष बनाएँ , 

सरे आम, पिटते जनगीत !
न्यायाधीश बनाकर इनको, क्यों पछ्ताएं मेरे गीत ?

बहुमत का फायदा उठाते
जमकर गुंडा राज चलाते
वोट दिलाया जिन गुंडों ने
उनके सर पर हाथ फिराते
नफरत और अन्याय देखकर,

अक्सर रोये , मेरे गीत !
तब तब कलम उठी अंगडाई लेकर लिखने, मेरे गीत !

जबतक जातिवाद पनपेगा
देश को यूँ ही रोना होगा !
जब तक जनता डरी रहेगी
इन लाशों को ढोना होगा !
कब तक जनता पहचानेगी 

अपनी ताकत अपनी जीत !
धीरे धीरे समझ आ रही , मुखर हो रहे हैं , जनगीत !

बेईमानों के चेहरों की कुछ
कुछ पहचान सामने आयी !
नकली चेहरों की नौटंकी ,
धीरे धीरे समझ तो आयी !
राजनीति ही आसानी से 

धन दिलवाये समझे गीत !
रंगमंच पर नाटक करते , कैसे प्यार सिखाएं गीत !

अनपढ़ जनता आसानी से
इनके बहकावे में आये !
जाति,धर्म की कसमें खाते
केवल वोट, बटोरें जाएँ !
सदबुद्धि जनता पा जाये,

लोकतंत्र की होगी जीत !
सरस्वती की करें वन्दना, चिंतित रहते मेरे गीत !


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