Sunday, August 25, 2013

कौन किसे सम्मानित करता,खूब जानते मेरे गीत -सतीश सक्सेना

अक्सर अपने ही कामों से 
हम अपनी पहचान कराते 
नस्लें अपने खानदान की 
आते जाते खुद कह जाते ! 
चेहरे पर मुस्कान, ह्रदय से 
गाली देते, अक्सर मीत !
कौन किसे सम्मानित करता,खूब जानते मेरे गीत !

सरस्वती को ठोकर मारें 
ये कमज़ोर लेखनी वाले !
डमरू बजते भागे ,आयें   
पुरस्कार को लेने वाले  !
बेईमानी छिप न सकेगी,
आशय खूब समझते गीत !
हुल्लड़ , हंगामे पैदा कर , नाम कमायें ऐसे  गीत !

कलम फुसफुसी रखने वाले 

पुरस्कार की जुगत भिड़ाये
जहाँ आज बंट रहीं अशर्फी  
प्रतिभा नाक रगडती पाये  !
अभिलाषाएं छिप न सकेंगी,
इच्छा बनें यशस्वी गीत !
बेच प्रतिष्ठा गौरव अपना , पुरस्कार हथियाते  गीत !

लार टपकती देख ज्ञान की 

कुछ राजे,  मुस्काते आये  !
मुट्ठी भर , ईनाम फेंकते 
पंडित  गुणी , लूटने  धाएं  ! 
देख दुर्दशा आचार्यों की,
सर धुन रोते , मेरे गीत  ! 
दबी हुई,राजा बनने की इच्छा,खूब  समझते  गीत !

चारण,भांड हमेशा रचते 
रहे , गीत  रजवाड़ों के  !
वफादार लेखनी रही थी 
राजों और सुल्तानों की !
रहे मसखरे,जीवन भर हम,
खूब सुनाये  स्तुति  गीत !
खूब पुरस्कृत दरबारों में,फिर भी नज़र झुकाएं गीत !

हिंदी  का  अपमान कराएं 

लेखक खुद को कहने वाले 
रीति रिवाज़ समझ न पायें 
लोक गीत को, रचने वाले 
कविता का उपहास बनाएं ,
करें प्रकाशित घटिया गीत !
गली गली में ज्ञानी लिखते,अपनी कविता, अपने गीत !

कैसे कैसे लोग यहाँ पर 
हिंदी के मार्तंड कहाये !
कुर्सी पायी है किस्मत से  
सुरा सुंदरी,भोग लगाए !
ऐसे इंद्र देव को पाकर ,
हंसी उड़ायें मेरे गीत !
भाषा औ साहित्य सजा कर , भोग लगाएं मेरे गीत !

इनके आशीर्वाद से मिलता
रचनाओं का फल भी ऐसे !
इनके एक वरदान से आता 
आसमान , चरणों में जैसे !
सिगरट और स्कॉच,बगल 
में साकी के संग, बैठे मीत !
पाण्डुलिपि संग दारु पाकर, मोहित होते मेरे गीत !

कविता,गद्य,छंद,ग़ज़लों पर ,
कब्ज़ा कर , लहरायें  झंडा !
सुंदर शोभित नाम रख लिए 
ऐंठ  के  चलते , लेकर डंडा !
भीड़ देख के आचार्यों  की , 
आतंकित  हैं , मेरे गीत  !
कहाँ गुरु को ढूंढें जाकर , कौन  सुधारे  आकर  गीत ! 

Saturday, August 10, 2013

पद्मनाभ की स्तुति करते ,आहुति देते मेरे गीत !

कौन हवन को पूरा करने
कमल, अष्टदल लाएगा ?
अक्षत पुष्प हाथ में लेकर
कौन साथ में  गायेगा  ?
यज्ञ अग्नि में समिधा देने,
कहीं से आयें मेरे मीत !
पद्मनाभ की, स्तुति करते ,आहुति देते मेरे गीत !

तुम्हें देखकर ही लिखने को 
सबसे पहले कलम उठायी !
तुम्हें देखकर ही पहले दिन
जाने क्यों लिख गयी रुबाई !
यार तुम्हारी यादों से ही, 
बार बार रच जाते गीत !
सिर्फ तुम्हारी ही गलियों में,धूम मचाने जाते गीत !

कितनी बार पुरानी यादें
अक्सर चुभती रहती हैं !
बिना कहे भी,कुछ बातें 
कानों में सुनाई पड़ती हैं !
बार बार वो नाम जुबा पर,

लाएं क्यों दीवाने गीत !
कभी न बापस आयेंगे क्षण,चाहें कितने तड़पें गीत !

क्या बतलाये कैसे भूला  
बीते युग की, यादों को !  
जैसे तैसे भुला सका था
अपनी कड़वीं रातों को !
फिर मेरे द्वार पर आकर, 
क्यों मुस्काए तेरी प्रीत !
समझ न आये मुझको लेकिन,आभारी हैं मेरे गीत !

कैसे दिन बीते, मेरे बिन
आँखों आँखों पूंछ लिया !
कभी याद भी आयी मेरी 
बिना कहे ही जान लिया !
चाहा था पर पूंछ न पाया, 
कभी पढ़े हैं मेरे गीत  ?
याद तो मेरी आयी होगी,जब जब देखे होंगे मीत !

जबसे तुमने गीत न गाये ,
तब से पीर और भर आई !
भरी दुपहरी, रूठ गयी हो ,
जैसे पाहुन से, अमराई !
सुबह सबेरे, देख द्वार पर, 
भौचक्के हैं , मेरे गीत !
चेहरे पर मुस्कान देख कर,ढोल बजाते मेरे गीत ! 

रोज रात में कहाँ से आती
मुझे सुलाने, त्यागमयी !
साधारण रंग रूप तुम्हारा
हो कितनी आनंदमयी  ?
बिन तेरे क्यों नींद न आये,
तुम्ही बताओ,मेरे मीत !
आहट पा, रजनीगंधा की , लगें नाचने , मेरे गीत  ! 

मैंने कब बुलवाया तुमको

अपने जख्म दिखाने को !
किसने अपना दर्द बांटना ,
चाहा , मस्त हवाओं को !
मुझे तुम्हारे न मिलने से, 
नहीं शिकायत मेरे मीत !
जब भी याद सुगन्धित होती, चित्र बनाते मेरे गीत ! 

कभी याद आती है मुझको

उन रंगीन फिजाओं की !
तभी याद आ जाती मुझको
उन सुरमई निगाहों की !
प्रथम बार जिस दिन देखा 
था , ठगे रह गए मेरे गीत !
जैसे तुमने नज़र मिलाई , मन गुदगुदी मचाएं गीत !

आज अकेला भौंरा देखा ,
धीमे धीमे, गाते देखा !
काले चेहरे और जोश पर
फूलों को, मुस्काते देखा !
खाते पीते केवल तेरी,
याद दिलाएं ,ये मधु गीत !
झील भरी आँखों में कबसे,डूब चुके हैं ,मेरे गीत ! 

 रत्न जडित आभूषण पहने,

नज़र नहीं रुक पाती है !
क्या दे,तुझको भेंट सुदामा
मेरी व्यथा , सताती है !
रत्नमयी को क्या दे पाऊँ,
यादें   लाये, मेरे गीत !
अगर भेंट स्वीकार करो तो,धूम मचाएं, मेरे गीत ! 

कैसे बंजर में, जल लायें ?

हरियाली और पंछी आयें ?
श्रष्टि सृजन के लिए जरूरी,
गंगा , रेगिस्तान में लायें !
आग और पानी न होते,
कैसे बनते , मेरे गीत !
तेरे मेरे युगल मिलन पर,सारी रात नाचते गीत ! 

अपने घर की तंग गली में !

मैंने कब चाहा बुलवाना ?
जवां उमर की उलझी लट को
मैंने कब चाहा, सुलझाना ?
मगर मानिनी आ ही गयी अब, 
चरण तुम्हारे ,धोते गीत !
स्वागत करते,निज किस्मत पर, मंद मंद मुस्काते गीत ! 

बिन बोले ही , बात करेंगे ,

बिना कहे ही,सब समझेंगे
आज निहारें, इक दूजे को,
नज़रों से ही , बात करेंगे !
ह्रदय पटल पर चित्र बनाएं , 
मौका पाकर  मेरे गीत !
स्वप्नमयी को घर में पाकर ,आभारी हैं ,मेरे गीत ! 

कैसे बिना तुम्हारे, घर में

रचना का श्रंगार कर सकूं
रोली,अक्षत हाथ में लेकर
छंदों का सत्कार कर सकूं
कल्याणी स्वागत करने को,
ढफली लेकर आये गीत !
सिर्फ तुम्हारे ही हाथों में,प्यार से सौंपे, अपने  गीत ! 

तेरी ऐसी याद कि मेरी हर

चिट्ठी, बन गयी कहानी !
जिसे, कलम ने तुझे याद कर
लिखा ,वही बन गयी रुबाई !
लगता जैसे महाकाव्य का,
रूप ले रहे,  मेरे गीत !
धीरे धीरे, तेरे दिल में, जगह बनाएं मेरे गीत ! 

दर्द समझते मेरे गीत - सतीश सक्सेना

किसी कवि की रचना देखें,
दर्द छलकता,  दिखता है  !
प्यार, नेह दुर्लभ से लगते ,
शोक हर जगह मिलता है !
क्या शिक्षा विद्वानों को दें ,
रचनाओं  में , रोते गीत !
निज रचनाएं,दर्पण मन का , दर्द समझते, मेरे गीत ! 

अपना दर्द किसे दिखलाते ?

सब हंसकर आनंद उठाते !
दर्द, वहीँ जाकर के बोलो ,
भूले जिनको,कसम उठाके !
स्वाभिमान का नाम न देना,
बस अभिमान सिखाती रीत ,
अपना दर्द, उजागर करते, मूरख  बनते  मेरे  गीत !

आत्म मुग्धता,  मानव की ,
कुछ काम न आये जीवन में !
गर्वित मन को समझा पाना ,
बड़ा कठिन, इस जीवन में !
जीवन की कड़वी बातों को, 
कहाँ भूल पाते हैं गीत !
हार और अपमान यादकर,क्रोध में आयें मेरे गीत !

जब भी कोई कलम उठाये 

अपनी व्यथा,सामने लाये ,
खूब छिपायें, जितना चाहें 
फिरभी दर्द नज़र आ जाये
मुरझाई यह हँसी, गा रही, 
चीख चीख, दर्दीले गीत !
अश्रु पोंछने तेरे,जग में, कहाँ मिलेंगे निश्छल गीत  ?

अहंकार की नाव में बैठे,

भूले  निज कर्तव्यों को 
अच्छी मीठी ,यादें भूले , 
संचित कडवे कष्टों को
कितने चले गए रो रोकर,
कौन सम्हाले बुरा अतीत !
सब झूठें ,आंसू पोंछेंगे , कौन सुनाये , मंगल गीत  ?

सभी सांत्वना, देते आकर 
जहाँ लेखनी , रोती पाए !
आहत मानस, भी घायल 
हो सच्चाई पहचान न पाए !
ऎसी ज़ज्बाती ग़ज़लों को ,
ढूंढें अवसरवादी गीत !
मौकों का फायदा उठाने, दरवाजे पर तत्पर गीत !

इतना दर्द सुनाऊं किसको , कौन समझता मेरे गीत -सतीश सक्सेना

क्या खोया क्या पाया हमने ,
क्या छीना , इन नन्हों से !
क्यों न आज हम खुद से पूंछे
क्या पाया,  इन  राहों  से !
बचपन की मुरझाई आँखें, 
खूब रुलाये , हँसते  गीत !
देख सको तो, आँखें देखें ,अपने शिशु की, मेरे मीत !

अहम् हमारे ने,हमको तो

शक्ति दिलाई , जीने में !
मगर एक मासूम उम्र के,
छिने खिलौने,बचपन में !
इससे बड़ा पाप क्या होगा, 
बच्चों से छीना संगीत !
असुरक्षा बच्चों को देकर,खूब लडे, अज्ञानी गीत  !

हम तो कभी नहीं हँस पाए ,

विधि ने ही कुछ पाठ पढाये !
बच्चों का न , साथ दे पाए ,
इक दूजे को,सबक सिखाये !
पाठ पढ़ाया किसने,किसको,
वाह वाह करते हैं गीत  ?
अपने हाथों शाख काट के,कालिदास, रचते हैं गीत  ? 

अभी समय है,चलो हंसाएं 

हम अपनी, मुस्कानों को 
तुम आँचल की छाया दे दो
मैं कुछ लाऊँ, भोजन को !
नित्य रोज घर उजड़े देखें , 
तड़प तड़प, रह जाए प्रीत !
इतना दर्द, सुनाऊं किसको ,कौन समझता, मेरे गीत !

एक बार देखो , दर्पण में ,

खुद से ही कुछ बात करो
जीवन भर का लेखा जोखा
जोड़ के , सारी बात करो !
खाना पीना और सो जाना,
जीवन से यह कैसी प्रीत ?
मरते दम तक, साथ निभाएं,कहाँ से लायें ऐसे मीत  ?

विश्वविजय का निश्चय करके,निकले दिल से मेरे गीत

जब भी कभी घोंसला नोचा,
अपने ही घर  वालों   ने  !
तब तब आश्रय दिया मुझे
कुछ, हंसों के दरवाजे ने  !
चूजों  तक ने सेवा की थी,
जब मुरझाये थे ये गीत !
कभी न, वे दिन भुला सकेंगे, आभारी हैं मेरे गीत ! 

याद खूब अपमान, अश्रु का
जिसे देख,कुछ लोग हँसे थे
सिर्फ तुम्हारी ही आँखों से ,
दो दो आंसू , साथ बहे थे  !
उन्ही दिनों लेखनी उठी थी,
अश्रु पोंछ कर,लिखने गीत !
विश्वविजय का निश्चय करके,निकले दिल से मेरे गीत !

दावानल के समय हमेशा
रिमझिम वारिश होती है !
जलती लपटों के समीप
जल भरी गुफाएं होती हैं !
शीतल आश्रय आगे आते, 
जब जब, झुलसे मेरे गीत !
चन्दन लेप लगा ममता ने, खूब सुलाए, घायल गीत ! 

हर खतरे में साथ रहे थे,
हर आंसू के साथ बहे थे
जब भी जलते तलुए मेरे
तुमने अपने हाथ रखे थे !
ऐसे प्यारों के कारण ही,
जीवन में लगता संगीत !
इनकी धीमी सी आहट से ,निर्झर झरते मेरे गीत ! 

धोखे की इस दुनियां में ,
कुछ प्यारे बन्दे रहते हैं !
ऊपर से साधारण लगते
कुछ दिलवाले, रहते हैं !
दोनों हाथ सहारा देते ,
जब भी ज़ख़्मी,देखे गीत !
अगर न ऐसे कंधे मिलते, कहाँ सिसकते मेरे गीत ! 

घायल हो हो कर पहचानें , गद्दारों को मेरे गीत -सतीश सक्सेना

कितने लोग मिले जीवन में
जिनके पैर पड़े थे, छाले !
रोते थे हिचकी, ले लेकर
उनको घर में दिए सहारे !
प्यार और अहसान न माने,
बड़े लालची थे, वे मीत !
घायल हो हो  कर पहचानें ,गद्दारों को, मेरे गीत !

चंद दिनों में दौलत पाकर

डींग  मारते , भड़क  रहे !
चंद तालियों को सुन कर ,
ही खुद को राजा मान रहे !
प्रजा समझ कर जिसे रुलाया,
वही करेगी इनको ठीक !
कुछ वर्षो के बाद,  इन्हीं  पर, खूब  हँसेंगे,  मेरे गीत  !

दम भरते हैं,धर्मराज का

करते काम, कसाई का !
पूरे दिन,मृदु वचन सुनाएँ 
रात को रूप, शराबी का !
कुछ दिन में जनता सीखेगी,
ध्यान से पढने, मेरे गीत !
बड़ी दुर्दशा, नेता झेलें  , जिस दिन जागें,  मेरे गीत  !

माल कमाने को निकले हैं 

देशभक्ति का झंडा लेकर  
प्रजातंत्र में, नेता निकले 
राजनीति का डंडा लेकर !
खूब बनायें मूर्ख देश को,
अनपढ़ प्रजा,सुन रही गीत !
पतन देख कर,राजनीति का,भौचक्के हैं, मेरे  गीत !

चोर उचक्के, रखवालों को
थप्पड़ भरे, बाज़ार मारते !
सच्चे लोगों को, समाज में
जीभर के अपमानित करते
चोरों को अध्यक्ष बनाएँ , 

सरे आम, पिटते जनगीत !
न्यायाधीश बनाकर इनको, क्यों पछ्ताएं मेरे गीत ?

बहुमत का फायदा उठाते
जमकर गुंडा राज चलाते
वोट दिलाया जिन गुंडों ने
उनके सर पर हाथ फिराते
नफरत और अन्याय देखकर,

अक्सर रोये , मेरे गीत !
तब तब कलम उठी अंगडाई लेकर लिखने, मेरे गीत !

जबतक जातिवाद पनपेगा
देश को यूँ ही रोना होगा !
जब तक जनता डरी रहेगी
इन लाशों को ढोना होगा !
कब तक जनता पहचानेगी 

अपनी ताकत अपनी जीत !
धीरे धीरे समझ आ रही , मुखर हो रहे हैं , जनगीत !

बेईमानों के चेहरों की कुछ
कुछ पहचान सामने आयी !
नकली चेहरों की नौटंकी ,
धीरे धीरे समझ तो आयी !
राजनीति ही आसानी से 

धन दिलवाये समझे गीत !
रंगमंच पर नाटक करते , कैसे प्यार सिखाएं गीत !

अनपढ़ जनता आसानी से
इनके बहकावे में आये !
जाति,धर्म की कसमें खाते
केवल वोट, बटोरें जाएँ !
सदबुद्धि जनता पा जाये,

लोकतंत्र की होगी जीत !
सरस्वती की करें वन्दना, चिंतित रहते मेरे गीत !


भुला के वादे,निश्छल दिल से,शर्मिन्दा हैं,मेरे गीत !

पता नहीं,कुल साँसे अपनी
हम  खरीद  कर , लाये हैं !
कल का सूरज नहीं दिखेगा
आज  समझ , ना  पाए हैं !
भरी वेदना, मन में लेकर , 
कैसे समझ  सकेंगे   प्रीत  ?
मूरखमन फिर चैन न पाए,जीवन भर अकुलायें गीत ! 

जीवन की कुछ भूलें ऐसी ,
याद , आज  भी आती है !
भरी  डबडबाई, वे ऑंखें ,
दिल में कसक जगाती हैं !
जीवन भर के बड़े वायदे , 
सपने खूब दिखाए मीत !
भुला के वादे,निश्छल दिल से,शर्मिन्दा हैं,मेरे गीत ! 

याद  रहे , वे निर्मल सपने,
कुछ अपने से,कुछ गैरों से 
दिवा स्वप्न जो हमने देखे
बिखर गए, भंगुर शीशे से 
जीवन भर के कसम वायदे, 
नहीं निभा पाए थे गीत !
अब क्यों यादे, उनकी आयें, क्यों पछताएं मेरे गीत ?

बड़े दिनों से बोझिल मन है 
कर्जा चढ़ा,   संगिनी का !
चलते थे अपराध बोध ले 
मन में क़र्ज़ ,मानिनी का !
दारुण दुःख में साथ निभाएं, 
कहाँ आज हैं,ऐसे मीत !
प्यार के करजे उतर न पायें ,खूब जानते मेरे गीत ! 

जीवन की कडवी यादों को
भावुक मन से भूले कौन ?
जीवन के प्यारे रिश्तों मे
पड़ी गाँठ, सुलझाए कौन ?
गाँठ पड़ी है,कसक रहेगी,
हर दम चुभता रहता तीर !
जानबूझ कर,धोखे देकर, कैसे नज़र झुकाते, गीत ? 

धनकुबेर को सर न झुकाया, बड़े अहंकारी थे गीत -सतीश सक्सेना

आज तुम्हारे पदचापों की 
सांस रोक कर आशा करता 
तेज धूप में घर से निकलें 
मैं दिल से आवाहन करता 
देखें कितना प्यार मिला है, 
कितने घर तक पंहुचे गीत 
कड़ी धूप में , घर से बाहर,  तुम्हें  बुलाते  मेरे   गीत !

धन के भूखे नेह की भाषा 
कभी समझ ना  पाए  थे  !
जो चाहे थे ,नहीं मिल सका 
जिसे न माँगा , पाए   थे  !
इस जीवन में,लाखों मौके,
हंस के छोड़े, हमने  मीत !
धनकुबेर को, सर न झुकाया, बड़े अहंकारी थे गीत !

जीवन भर तो रहे अकेले 
झोली कहीं नहीं फैलाई 
गहरे अन्धकार में  रहते ,
माँगा कभी दिया,न बाती
कभी न रोये, मंदिर जाकर ,
सदा मस्त रहते थे गीत !
कहीं किसी ने,दुखी न देखा,जीवन भर मुस्काये गीत ! 

जीवन बहता जाए , निर्झर
शीतल पवन चले ज्यूं सर्सर 
चुनें, चुगें  या चुक जाएंगे
सुनने से,सृष्टा  का मर्मर
सृष्टि-चक्र में छोड़ें अपने, 
प्रीत के पद-चिह्नों की रीत !
आओ मिलकर गाएं हम सब, जीवन के स्पंदन-गीत ! 

कहीं तो माँ की ममता ढूंढें 
कहीं पिता की छाया, गीत !
बिटिया की स्नेहिल ऑंखें  
बहन की  राखी, मेरे गीत !
बेगानों की भीड़ में  खोजें, 
कुछ अपने से, अपनों को !
हर मन की पीड़ा को समझे , भावुक होते, मेरे गीत !

चारो ओर अज्ञान अँधेरा
क्रोध में  भरते देखे लोग ,
सोंचा चित्त आनंद मिलेगा
पर विषाद,भर जाते लोग !
दहक़ रहे मरूस्थल में,
ज्यों पानी लेकर,मिलते मीत !
विषव्यापी इस चन्दनबन में, शीतल धारा मेरे गीत !  

सारे जीवन  में  यादें ही ,
अक्सर साथ निभाती हैं !
न जाने , कब डोर कटे ,
कुछ गांठें पड़ती जातीं है 
एक दिवस तो जाना ही है, 
बहुत लिख लिए हमने गीत !
जिसको मधुर लगे, वे गाएँ , प्यार सिखाएं,  मेरे गीत ! 

क्या मैं तुमसे करूं शिकायत
प्यास नहीं ,  बुझ पाएगी  !
क्या जीवन भर खोया पाया
उम्र  फिसलती   जायेगी  !
जितना जिया,खूब पाया है, 
खूब हंस लिए, मेरे गीत !
मस्ती के अनंत सागर में, जी भर  गोते खाए  गीत !

विश्व नियंता के दरवाजे , कभी ना जाएँ , मेरे गीत !

सब कहते, ईश्वर लिखते ,
है,भाग्य सभी इंसानों का !
माता पिता छीन बच्चों से
चित्र बिगाड़ें, बचपन का !
कभी मान्यता दे न सकेंगे, 
निर्मम रब को, मेरे गीत !
मंदिर,मस्जिद,चर्च न जाते, सर न झुकाएं मेरे गीत ! १०

बचपन से,ही रहे खोजता 
ऐसे , निर्मम, साईं   को  !
काश कहीं मिल जाएँ मुझे
मैं करूँ निरुत्तर,माधव को !
अब न कोई वरदान चाहिए,
सिर्फ शिकायत मेरे मीत !
विश्व नियंता के दरवाजे , कभी न जाएँ , मेरे गीत ! 

क्यों तकलीफें  देते, उनको  ?
जिनको शब्द नहीं मिल पाए !
क्यों  दुधमुंहे, बिलखते रोते 
असमय,माँ से अलग कराये !
तड़प तड़प कर अम्मा खोजें,
कौन सुनाये इनको गीत !
भूखे पेट , कांपते पैरों , ये  कैसे , गा  पायें   गीत   ?? 

जिनका,कोई नज़र न आये
सबसे , प्यारे  लगते  हैं   !
जिनसे सब कुछ छीन लिया 
हो,  वे अपने  से  लगते हैं  !
कभी समझ न आया मेरे, 
कष्ट दिलाएंगे जगदीश !
सारे जीवन सर न झुकाएं, काफिर होते मेरे गीत  !

जैसी करनी, वैसी   भरनी !
पंडित , खूब  सुनाते आये !
पर  नन्हे  हाथों की करनी
पर,मुझको विश्वास न आये
तेरे महलों क्यों न पंहुचती 
ईश्वर, मासूमों की चीख !
क्षमा करें,यदि चढ़ा न पायें, अर्ध्य, देव को,मेरे गीत !

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