Saturday, February 09, 2013

इच्छा करते मेरे गीत ! -सतीश सक्सेना

गरजें लहरें बेचैनी की
कहाँ किनारा पाएंगी !
धीरे धीरे ये आवाजें ,
सागर में खो जाएंगी !
क्षितिज नज़र न आये फिर
भी, हार न मानें मेरे गीत !
ज़ख़्मी दिल में छुपी वेदना, जाने किसे दिखाएँ गीत !


चाहें दिन हों या युग बीतें ,
मैं आशा के गीत लिखूंगा !
जिसे गुनगुनाते, चेहरे पर
आभा छाये, गीत लिखूंगा !
कभी निराशा पास न आये ,
दिल बहलायेंगे ये गीत !
विषम परिस्थितियों में तेरा, साथ निभाएं मेरे गीत !

चलते चलते , जीवन बीता !
राही को आराम चाहिए !
व्यथा वेदना ताप से जलते
मन को शीतल हवा चाहिए !
काश कहीं से शीतल झोंका,
सूखे बालों को ,सहला दे !
कभी कभी , मालिक बनने की , इच्छा करते मेरे गीत !


इस दुनियां में मुझसे बेहतर
गीत, सैकड़ो लिखने वाले !
मुझसे सुंदर शब्दों वाले ,
सबको अच्छा कहने वाले !
अपना दर्द भुला न पाये,
क्या समझाए तुमको गीत !
अपने जख्मों को सहलाते , जीना सीखें मेरे गीत !

कुछ मधुशाला का रस लेने
आये थे , सुनने गीतों को !
कुछ तो इनमें मस्ती ढूँढें ,
कुछ यहाँ खोजते मीतों को !
यह कैसे बतलाएं सबको,
कैसे लिख जाते हैं गीत !
कष्टों के घर, पले हुए हैं ,प्यार के भूखे  मेरे गीत !

कहाँ से सुन पाएंगे, गाने

रोज़ कमा कर खाने वाले
ढफली,ढोल,मृदंग बज रहे
उनके घर , जो पैसे वाले !
बहुत लोग आये थे लेने ,
मगर नहीं जा पाए गीत !
धनकुबेर के दरवाजे पर , नाच न पायें निर्धन गीत !


कुछ दिल वाले इंसान मिले
कुछ मस्ती वाले यार मिले
कुछ बिना कहे, आते जाते
घर बार लुटाते, यार मिले !
आज सवेरे घर पर मेरे,
जो पग आये ,निर्मल गीत !
नेह के आगे, शीतल जल से, चरण पखारें मेरे गीत !

अपने श्रोताओं में , सहसा, 
तुम्हे देखकर मन सकुचाया !
कैसे आये, राह भूलकर, मैं
लोभी, कुछ समझ न पाया !
साधक जैसी श्रद्धा लेकर,
तुम भी सुनने आये गीत !
कहाँ से वह आकर्षण लाऊँ ,तुम्हें लुभाएं मेरे गीत !

रात स्वप्न में एक जादुई ,
छड़ी ,मुझे क्यों छूने आई !
आज बादलों के संग आके
मेरी लट, किसने सहलाई
लगता दिल के दरवाजे पर,
दस्तक देते, मेरे मीत !
प्रियतम के आने की आहट,खूब समझते मेरे गीत !

कौन यहाँ पर, तेरे जैसा
हंस, नज़र में आता है !
कौन यहाँ गैरों की खातिर
तीर ह्रदय पर , खाता है !
राजहंस को घर में पाकर,
वन्दनवार लगायें गीत !
मुट्ठी भर, मन मोती लाकर, करें निछावर मेरे गीत !


बिल्व पत्र और फूल धतूरा
पंचामृत अर्पित शिव पर !
मीनाक्षी सम्मान हेतु, खुद
गज आनन्, दरवाजे पर !
पार्वती सम्मानित पाकर,
शंख बजाएं , मेरे गीत !
मीनाक्षी तिरुकल्याणम पर,खूब नाचते मेरे गीत !

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